जैवविविधता
संस्थान के जैवसंसाधन विकास इकाई में जीआईएस सुविधा, inventorization, डेटाबेस विकास और पादप संसाधनों की मानचित्रिकरण और परिवेश और भूमि के प्रकार एवं उपयोग पैटर्न के लिए कम्प्यूटेशनल सुविधा है। यह इकाई अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त रेफरल वनस्पति संग्रहालय का रखरखाव और इसे अद्यतन करता है। संस्थान ने पर्णांग (फर्नरी) को विकसित किया गया है जिसमें हिमालय क्षेत्र की दुर्लभ और आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण टेरिडोफाइट रखे गए है। आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण औषधीय और सगंध पौधों के गृहीकरण एवं कृषि प्रौद्योगिकी के लिए प्रक्षेत्र और पॉलीहाउस उपलब्ध हैं।
संस्थान पश्चिमी हिमालय क्षेत्र सर्वेक्षण, संग्रहण, रूपात्मक लक्षणचित्रण और आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण पौधों की प्रजातियों के डेटाबेस के निर्माण पर कार्य कर रहा है। संस्थान ने अब तक हिमाचल प्रदेश के 50% के क्षेत्र में यह कार्य कर लिया है।हिमफ्लोरिस(हिमाचल प्रदेश फ्लोरा इन्फार्मेशन सिस्टम "himFloris", हिम वन संकेत "himVanSankat"हिम पादप संकलन "him-Padap-Sanklan",ट्रम्पिस(ट्रेडिशनल मेडिसनल प्लांट इन्फार्मेशन सिस्टम) TRAMPIS और वन hyperspectral संग्रहण आदि संस्थान द्वारा विकसित महत्वपूर्ण डेटाबेस से कुछ हैं। विभिन्न प्रयोजनों के लिए स्थानीय लोगों द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले पौधों की पहचान करने के हिमाचल प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में नृवानस्पतिक सर्वेक्षण भी किए जाते है, संग्रहित जानकारी का दस्तावेजीकरण करके इसे पारंपरिक ज्ञान डिजिटल लाइब्रेरी (TKDL) परियोजना के अन्तर्गत सीएसआईआर को प्रस्तुत किया जाता है।
संस्थान के पास वनस्पतिय संग्रहालय है जिसमें 1208 से ज्यादा पुष्पीय पौधों की प्रजातियों के 13000 नमूनों का संग्रह किया गया है जोकि 602 पौधे की वंश और 137 पौध परिवारों से संबधित हैं और इन्हे बैन्थम एवं हुक्कर द्वारा दी गई वर्गीकरण विघि के अनुसार रखा गया है। संस्थान द्वारा हिमाचल प्रदेश के फ्लोरा में 6 नई प्रजातियों को अभिलेखित किया गया है। आईएचवीटी वनस्पति संग्रहालय में मुख्य रूप से पश्चिमी हिमालय क्षेत्र के नमुने संग्रहित किए गए हैं। होयुटूनिया (सौरूसेसी परिवार) एवं हिप्परस (हिप्परीडियेसी परिवार) के एक विशिष्ट प्रकार के नमूने इस वनस्पतिय संग्रहालय में भी शामिल हैं। टेरिडोफाइट समुदाय के पौधों में औषधीय, सौंदर्य एवं आर्थिकी की विशाल क्षमता है। टेरिडोफाइट के महत्व को ध्यान में रखते हुए एवं पालमपुर एवं इसके आस पास के क्षेत्रों में मौजूदा फर्न एवं फर्न सहयोगी वनस्पति प्रजातियों की विविधता को समझने के लिए प्रारंभिक सर्वेक्षण का आयोजन किया गया। लगभग 60 प्रजातियों की पहचान की गई जिसमें 45 हि. जै. पौ. सं. परिसर से एकत्रित की गई। इनमें से एल्युरॉइटरिस, एडिएंटम, अथाइरिम, ड्रायोटेरिस, पोलिस्टिचम, टेरिस एवं थैलिपटेरिस वंश की प्रधानता है । दुर्लभ एवं असमान्य टेक्सा में अरायोस्टिजिया, लाइगोडियम, माईक्रोसोरम, पोलिपोडायोडस और पाईरोसिया शामिल हैं।
स्थलाकृतिक नक्शे और उपग्रह चित्रों के आधार पर हिमाचल प्रदेश के भूदृश्य तत्वों और पादप संसाधनों के मानचित्रिकरण का कार्य 2004 में शुरू किया गया था। कांगड़ा जिले, किन्नौर जिले में भाभा घाटी, कुल्लू जिले के सोलंग नाला वाटरशेड और चंबा जिले के पांगी क्षेत्र के भूमि उपयोग / आच्छादन /विद्यमान वनस्पति के नक्शे तैयार किए गए हैं। स्पीति घाटी में सेब के बगीचे के और कांगड़ा हमीरपुर और ऊना जिलों में बांस संसाधन के मानचित्र भी विकसित किए गए।
संस्थान के हर्बल गार्डन में लगभग 50 दुर्लभ पौधे विकसित हो रहे हैं। इनमें से 8 प्रजातियों की कृषि पद्धति विकसित की गई है, जबकि चिकित्सीय महत्व की 7 प्रजातियों (करकुमा एरोमेटिका (हिमहल्दी), वेलेरियाना जटामांसी (हिमबाला), हिडीचियम स्पाइकेटम (हिमकचरी), डाइसकोरिया बल्बीबफेर, क्रेटेगस ऑक्सींकेंथा, सिलीबम मेरिनम और कोस्टीस स्पेथसियस) की फसल-खेती पद्धति पैकेज को मानकीकृत किया गया है। हिमाचल में बड़ी इलायची की खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों के खेतों में के उत्पादन पर प्रदर्शनों प्रखंडो को भी स्थापित किया गया है।